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मंदिर का महत्त्व: सनातन संस्कृति का धडक़ता हृदय हैं मंदिर

हम मंदिर क्यों जाते हैं? अगर इस प्रश्न का उत्तर मिलता है, प्रार्थना करने के लिए, भगवान से कुछ मांगने के लिए मंदिर जाते हैं, तो इसे मंदिर के महत्त्व की एक अत्यंत सीमित एवं संकीर्ण अभिव्यक्ति कहा जाएगा। कुछ हद तक मंदिर जाने का प्रयोजन मनोकामनाओं की पूर्ति हो भी सकता है, मगर मंदिर का महत्त्व इससे कहीं अधिक है। 

क्या आप सचमुच सोचते हैं कि इस विशाल ब्रह्मांड को चलाने वाली महान शक्ति आपकी छोटी-छोटी जरूरतों का हिसाब रखने के लिए बैठी है? मंदिर केवल भिक्षा मांगने का स्थान नहीं है। यदि मंदिर को केवल अपनी कामनाओं की टोकरी भरवाने तक सीमित कर दिया है, तो आपने सनातन जीवन के सबसे महत्त्वपूर्ण आयाम को दरकिनार कर दिया है। 

मंदिर तो समाज का धडक़ता हुआ हृदय रहे हैं। हाल ही में हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय के माननीय न्यायाधीशों ने अपने एक निर्णय में मंदिरों के महत्त्व को इन्हीं शब्दों में रेखांकित करने का एक शुभ प्रयास किया था। दरअसल, जब हमने मंदिर बनाए, तो हमने इनके निर्माण में केवल ईंट, पत्थर और चूने का उपयोग नहीं किया। 

हमने इनके निर्माण में विज्ञान, ज्यामिति और ऊर्जा का निवेश किया। मंदिर एक विशेष रूप से चार्ज की गई जगह होती है। यह एक ऐसा स्थान है, जहां ब्रह्मांडीय ऊर्जा को एक विशेष रूप में, एक विशेष आवृत्ति में स्थिर किया जाता है। मंदिर की स्थापना एक जीवंत प्रक्रिया है।

इसे ‘प्राण प्रतिष्ठा’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है ‘जीवन शक्ति का आरोपण’। एक मंदिर केवल तभी एक मंदिर बनता है, जब उसमें जीवन का संचार किया जाता है, जब वह एक जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र बन जाता है। यह एक ऐसी जगह है जहां ऊर्जा घनत्व इतना अधिक होता है कि यदि आप उसमें थोड़ी देर बैठते हैं, तो आपकी अपनी ऊर्जा को एक अलग आयाम मिल जाता है। 

मंदिरों ने सदियों तक भारतीय जीवन को न केवल आध्यात्मिक रूप से, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक रूप से भी संगठित किया है। मंदिर सामुदायिक जीवन का केंद्र थे। अगर कोई बच्चा पढऩा सीख रहा है, तो वह मंदिर के परिसर में सीखता था। अगर किसी को भोजन की आवश्यकता है, तो ‘अन्नदानम्’ मंदिर से होता था। 

हमारी शास्त्रीय संगीत, नृत्य और लोक कलाएं मंदिरों के प्रांगण में ही संरक्षित और पल्लवित हुईं। कल्पना कीजिए नटराज की मूर्ति के सामने भरतनाट्यम का प्रदर्शन करना या मंदिर की शांत दीवारों के बीच बैठकर ध्रुपद का अभ्यास करना। यह परमात्मा को अर्पित की गई एक भावपूर्ण कलात्मक अभिव्यक्ति थी।

 मंदिर एक विश्वविद्यालय, एक बैंक, एक अन्न क्षेत्र, एक अस्पताल और सबसे ऊपर, संस्कृति के संरक्षक थे। हमारी विरासत, हमारी परंपराएं और ज्ञान का भंडार मंदिरों की दीवारों में सुरक्षित रखा गया था। उन्होंने यह सुनिश्चित किया कि हिंदू संस्कृति की धारा बिना किसी अवरोध के बहती रहे।

मानव अस्तित्व का प्रत्येक आधार मंदिर के साथ जुड़ता है। मंदिर आपको केवल ईश्वर से नहीं जोड़ता, यह आपको जीवन की समग्रता से जोड़ता है। यह आपको याद दिलाता है कि आप केवल शरीर और मन का एक संग्रह नहीं हैं, आप एक ऊर्जा हैं, इस ब्रह्मांड का एक सूक्ष्म हिस्सा हैं। 

जब आप एक चाज्र्ड मंदिर में प्रवेश करते हैं, तो यह आपकी ऊर्जा को उस आयाम तक ले जाने का प्रयास करता है जहां से आपको जीवन का अनुभव होता है। इसलिए हमारा किसी मंदिर में जाना तभी सार्थक होगा, जब हम मंदिर के महत्त्व में निहित मूल भावना को आत्मसात् करके दर्शन हेतु जाएं।

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