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Shimla: सस्ते डाटा व सस्ती कॉल का दौर जल्द हो सकता है खत्म : अभिषेक राणा

the round of cheap data and cheap calls may end soon

शिमला: हिमाचल कांग्रेस सोशल मीडिया के चेयरमैन अभिषेक राणा ने कहा है कि देश में चल रहे निरंतर आर्थिक मंदी के दौर में अब मोदी का डिजिटल इंडिया भी जुमला साबित होने वाला है। क्योंकि डिजिटल इंडिया को अब पलीता लग सकता है। जिसकी सजा अंतत करदाता और उपभोक्ता को ही चुकानी होगी। क्योंकि टेलीकॉम सेक्टर सरकार की चुप्पी के कारण बर्बाद होने की कगार पर पहुंच गया है। अभिषेक राणा पेशे से एक कुशल वकील भी हैं। उन्होंने कहा कि सरकार की चुप्पी और सुप्रीम कोर्ट के दखल के बाद अब यह तय हो चुका है कि या तो टेलीकॉम सेक्टर की बची-खुची कंपनियां 1 लाख 47 हजार करोड़ एग्रीगेट ग्रॉस रेवन्यू का बकाया चुकाएं लेकिन इतना पैसा कंपनियों के पास है नहीं। कंपनियां सरकार और सुप्रीम कोर्ट को राहत की गुहार लगा चुकी हैं।

जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया है कि यह सरकार द्वारा तय किया गया नियम है और अब यह बकाया चुकाना ही होगा। इसी कड़ी में करीब 2 लाख करोड़ रुपए का बकाया गैस अथॉरिटी ऑफ इंडिया, ऑयल इडिया व पावर ग्रिड को भी उस सेवा के लिए चुकाना पड़ेगा जो टेलीकॉम सेक्टर की कंपनियों ने उन्हें कभी दी ही नहीं। क्योंकि गैस पाइप लाईन के साथ ऑपटिक्ल फाइबर बिछाने की एवज में यह स्पेक्ट्रम की फीस उन्हें अब भरनी होगी। राणा ने कहा कि कुल मिलाकर अब आने वाले दौर में सस्ता डाटा व सस्ती कॉल का जमाना हवा हो जाएगा। क्योंकि कि सरकार इस मामले से पूरी तरह बचती हुई नजर आ रही है। टेलीकॉम सेक्टर के संकट में सरकार पैटर्न के तौर पर कहीं नजर नहीं आ रही है।

वोडाफोन व आइडिया जैसी कंपनियां तो निश्चित तौर पर बंद होंगी लेकिन एयरटेल को भी जिंदा रहने के लिए भारी प्रयास करने होंगे। टेलीकॉम सेक्टर पर आए इस संकट पर अगर सरकार ने अपनी चुप्पी तोड़ कर पैटर्न के तौर पर कोई प्रयास नहीं किया तो अब देश में मोबाइल सेवाएं और डाटा आम आदमी की पहुंच से जल्द ही बाहर हो जाएगा और इन कंपनियों के बंद होने से लाखों कर्मचारी बेरोजगार हो जाएंगे। अकेली वोडाफोन के 50 हजार कर्मचारियों के परिवारों के पेट पर लात पडऩे वाली है लेकिन सरकार इस संकट से अनजान बनकर खामोश बैठी हुई है। हालांकि यह संकट सियासी तौर पर बीजेपी की ही देन है। क्योंकि जब 2 जी स्पेक्ट्रम मामला उठा था तब बीजेपी ने चीख-चीख कर देश को गुमराह करके अपने सियासी हित साधे थे जिसके कारण 122 कंपनियों के लाइसेंस रद्द हुए थे लेकिन बाद में फैसला यह आया था कि स्पेक्ट्रम घोटाले में कुछ निकला ही नहीं।

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