भीष्म पंचक : महाभारत काल से जुड़ा है महत्व, इस व्रत को रखने से होती है मोक्ष की प्राप्ति

भीष्म पंचक : हिंदू धर्म में एक विशेष व्रत और अवधि है, जो कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी से शुरू होकर पूर्णिमा तक के पांच दिनों तक चलता है। सामान्य पंचक को ज्योतिष शास्त्र में अशुभ माना जाता है, जिसमें शुभ कार्य वर्जित होते हैं, लेकिन कार्तिक मास का यह भीष्म पंचक अत्यंत शुभ, पुण्यदायी और मंगलकारी माना जाता है।
इसे विष्णु पंचक या पंच भीखम भी कहा जाता है। इसकी शुरुआत देवउठनी एकादशी से होती है और समापन कार्तिक पूर्णिमा पर होता है। यह व्रत महाभारत के पितामह भीष्म से जुड़ा है। मान्यता है कि महाभारत युद्ध के बाद भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने पर इन पांच दिनों में उपवास किया और पांडवों को ज्ञान प्रदान किया। श्रीकृष्ण ने इन दिनों को शुभ घोषित किया, जिससे यह व्रत की परंपरा चली आ रही है।
चलिए अब आपको इसके शुभ मुहूर्त के बारे में बताते हैं
दृक पंचांग के अनुसार, कार्तिक शुक्ल एकादशी, जिसे देवउठनी एकादशी कहते हैं 1 नवंबर 2025 को सुबह 9 बजकर 11 मिनट पर शुरू होगी और 2 नवंबर को सुबह 7 बजकर 31 मिनट पर समाप्त होगी। उदद्यातिथि के अनुसार, एकादशी और द्वादशी 2 नवंबर को, 3 नवंबर को त्रयोदशी, 4 नवंबर को चतुर्दशी और 5 नवंबर को पूर्णिमा है|
पौराणिक मान्यताओं के अनुसार जब महाभारत के युद्ध में पांडवों की जीत हुई, तब भगवान श्रीकृष्ण, पांडवों को भीष्म पितामह के पास लेकर गए। बाणों की सैय्या पर लेटे हुए भीष्म पितामह, सूर्य के उत्तरायण होने की प्रतिक्षा कर रहे थे। तब श्रीकृष्ण ने भीष्म पितामह से पांडवों को कुछ ज्ञान प्रदान करने का अनुरोध किया। श्री कृष्ण भगवान के अनुरोध पर उन्होंने पांडवों को राजधर्म, वर्णधर्म और मोक्षधर्म का ज्ञान दिया। कहते हैं कार्तिक शुक्ल पक्ष की एकादशी से लेकर पूर्णिमा तिथि तक यानी कि कुल पांच दिनों तक भीष्म द्वारा ज्ञान देने का यह क्रम चलता रहा।
भीष्म द्वारा पूरे पांच दिनों तक ज्ञान देने पर श्रीकृष्ण ने कहा कि आपने जो इन पांच दिनों में यह ज्ञान दिया है अब से ये पांच दिन बहुत ही मंगलकारी हो गए हैं। भविष्य में ये पांच दिन ‘भीष्म पंचक’ के नाम से जाने जाएंगे।
कहा ये भी जाता है कि उस समय श्रीकृष्ण ने कहा था कि ‘हे पितामह। जो व्यक्ति इन पांच दिनों में आपके नाम से जल अर्पित और पूजन करेगा, उसके सभी कष्ट मैं दूर करूंगा।’ सतयुग में ऋषि वसिष्ठ, भृगु और गर्ग ने इस व्रत का पाठ किया था। त्रेता में महाराजा अंबरीश ने इसे अपनाया। गरुड़ पुराण कहता है कि भीष्म पंचक से पूरा पुण्य मिलता है। यह व्रत धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष की प्राप्ति कराता है।
वहीँ कल यानी एकादशी के दिन भगवान श्रीकृष्ण के चरणों में कमल पुष्प अर्पित करें और द्वादशी तिथि पर जांघ पर बिल्व पत्र चढ़ाएं। त्रयोदशी के दिन नाभि पर सुगंध यानि इत्र अर्पित करें और चतुर्दशी को कंधों पर जावा का फूल चढ़ाएं। पुर्णिमा के दिन मालती पुष्प अर्पित करें।
हर दिन स्नान के बाद श्रीकृष्ण या विष्णु की मूर्ति के सामने जल, फल और तुलसी अर्पित करें। व्रत कथा पढ़ें और ‘ॐ नमो भगवते वासुदेवाय’ मंत्र जपें। दिन में एक समय शुद्ध सात्विक भोजन लें।
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