Supreme Court : चुनाव आयोग बताए, कितने दागी नेताओं को राहत दी

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को चुनाव आयोग से ऐसे दागी नेताओं की लिस्ट मांगी, जिन पर से उसने चुनाव लडऩे से बैन के पीरियड को कम कर दिया या हटा दिया। कोर्ट ने चुनाव आयोग से दो हफ्ते में जवाब मांगा है।
वहीं, याचिकाकर्ता से कहा कि चुनाव आयोग से जानकारी मिलने के बाद दो हफ्तों के अंदर अपना जवाब दाखिल करें। दरअसल रिप्रजेंटेंशन ऑफ पीपल एक्ट, 1951 में प्रावधान है कि दागी नेता दो साल या उससे ज्यादा की सजा होने पर छह साल तक चुनाव नहीं लड़ सकते। भले ही उसे जमानत मिल गई हो या फैसले के खिलाफ ऊपरी कोर्ट में मामला चल रहा हो।
इसी एक्ट की धारा 11 के तहत चुनाव आयोग के पास ताकत है कि वह किसी मामले में इस अवधि को कम या पूरी तरह हटा सकता है। ऐसा करने पर स्पष्ट कारण भी दर्ज करना होगा। कोर्ट ने ऐसे ही मामलों की जानकारी मांगी है।
स्तनपान के लिए पर्याप्त सुविधाएं मुहैया करवाए सरकार
महिलाओं के अधिकारों पर एक और अहम फैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि सरकार की यह जिम्मेदारी बनती है कि वह माताओं को अपने बच्चों को स्तनपान कराने के लिए पर्याप्त सुविधाएं मुहैया कराए। अदालत ने साफ किया कि स्तनपान केवल एक निजी प्रक्रिया नहीं, बल्कि महिला के प्रजनन अधिकार का अहम हिस्सा है और यह मां और बच्चे दोनों के स्वास्थ्य के लिए जरूरी है।
अदालत ने यह भी कहा कि केवल सरकार ही नहीं, बल्कि नागरिकों को भी सुनिश्चित करना चाहिए कि सार्वजनिक स्थानों या कार्यस्थलों पर स्तनपान कराने की प्रथा को कलंकित न किया जाए। जस्टिस बीवी नागरत्ना और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने अपने आदेश में कहा कि स्तनपान बच्चे के जीवन, अस्तित्व और स्वस्थ विकास का अभिन्न हिस्सा है। यह मां के अधिकारों से जुड़ा हुआ है और इसलिए राज्य का यह कत्र्तव्य बनता है कि वह माताओं को अपने शिशुओं को स्तनपान कराने के लिए उचित माहौल और सुविधाएं प्रदान करे।
अदालत ने किया एडवाइजरी का जिक्रशीर्ष अदालत ने यह टिप्पणी अव्यान फाउंडेशन की याचिका पर सुनवाई के दौरान की, जिसमें सरकार से यह निर्देश देने की मांग की गई थी कि वह सार्वजनिक स्थानों पर शिशुओं और माताओं के लिए स्तनपान और देखभाल कक्ष जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराए। कोर्ट ने केंद्र सरकार द्वारा फरवरी 2024 में जारी एक एडवाइजरी का भी जिक्र किया, जिसमें कार्यस्थलों और सार्वजनिक इमारतों में स्तनपान कक्ष और क्रेच जैसी सुविधाओं का सुझाव दिया गया था।
दो हफ्तों के भीतर राज्य सरकारों को भेजें एडवाइजरी: सुप्रीम कोर्टसुप्रीम कोर्ट ने माना कि यह एडवाइजरी संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) और अनुच्छेद 15(3) (महिलाओं के लिए विशेष प्रावधान) के तहत उचित है। अदालत ने केंद्र सरकार को आदेश दिया है कि वह इस एडवाइजरी को दो हफ्ते के भीतर राज्य सरकारों को एक रिमाइंडर के तौर पर भेजे, ताकि सार्वजनिक स्थानों पर महिलाओं को यह बुनियादी सुविधाएं मिल सकें।
No comments