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Yug Murder Case : हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट पहुंचे परिजन


शिमला के बहुचर्चित युग हत्याकांड में पीडि़त परिवार ने हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। युग के पिता विनोद गुप्ता ने शीर्ष अदालत में एसएलपी दायर करते हुए आरोपियों को फांसी की सजा देने की मांग की है। युग के पिता विनोद गुप्ता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने याचिका को स्वीकार कर लिया है और मामले पर जल्द सुनवाई होने की उम्मीद है। परिवार ने कहा कि वह हाई कोर्ट के फैसले से संतुष्ट नहीं है। हाई कोर्ट ने 23 सितंबर को निचली अदालत के निर्णय को आंशिक रूप से बदलते हुए एक दोषी तेजिंद्र पाल को बरी कर दिया था।

जबकि दो दोषियों चंद्र शर्मा और विक्रांत बख्शी की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था। युग के पिता विनोद गुप्ता का कहना है कि जिस आरोपी की हत्या में प्रमुख भूमिका थी, उसी को बरी कर दिया गया है और दो दोषियों की सजा भी कम कर दी गई, जो स्वीकार्य नहीं है।

फिरौती के लिए किया था चार साल के मासूम का अपहरण

गौरतलब है कि साल 2014 में चार वर्षीय बच्चे युग गुप्ता का फिरौती के लिए अपहरण किया गया, उसे जबरन शराब पिलाई गई। उसे एक भारी पत्थर से बांध कर नगर निगम के पानी के टैंक में डुबोकर मार दिया गया था।

11 साल से न्याय की गुहार

परिवार के सदस्यों ने कहा कि एक आरोपी तेङ्क्षजद्र का बरी होना बेहद दुखद है क्योंकि उसने ही कथित तौर पर युग को बंधक बनाकर रखा और बक्से में ले जाने में मदद की थी। उन्होंने मांग की है कि तेङ्क्षजद्र को पासपोर्ट जारी न किया जाए और चंद्र शर्मा को कोई पैरोल न दी जाए। विनोद गुप्ता ने कहा कि 11 साल के संघर्ष के बावजूद परिवार को न्याय नहीं मिल पाया है।

शीर्ष अदालत में युग के पिता की दायर विशेष अनुमति याचिका मंजूर

युग के पिता विनोद गुप्ता ने शीर्ष अदालत में एक विशेष अनुमति याचिका (एसएलपी) दायर की है, जिसे सुनवाई के लिए स्वीकार कर लिया गया है। इस मामले में जिला एवं सत्र न्यायालय ने पांच सितंबर, 2018 को चंद्र शर्मा, विक्रांत बक्शी और तेङ्क्षजदर पाल को बच्चे के अपहरण, यातना और हत्या के लिए दोषी ठहराते हुए तीनों को मौत की स•ाा सुनायी थी। यह दोषसिद्धि 100 से अधिक गवाहों के बयानों और सीआईडी की 2,300 पन्नों की चार्जशीट पर आधारित थी। उच्च न्यायालय ने 23 सितंबर, 2025 को इस फैसले को संशोधित कर दिया।

न्यायमूर्ति विवेक ङ्क्षसह ठाकुर और न्यायमूर्ति राकेश कंथला की खंडपीठ ने कहा कि रिकॉर्ड से यह साबित नहीं होता कि दोषी सुधार की गुंजाइश से परे हैं और चंद्र शर्मा तथा विक्रांत बक्शी की मौत की स•ाा को कम करते हुए उन्हें आजीवन कारावास की स•ाा दी, जबकि तेङ्क्षजदर पाल को साक्ष्यों के अभाव में बरी कर दिया गया।

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